Lalita Vimee

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औरत, आदमी और छत , भाग 38

  सुबह उठ कर मिन्नी घूमने निकल ग ई थी,सुबह के साढे पाँच बज ग ए थे,पर अंधेरा गहराया हुआ था।  चलते चलते सोच रही थी कल से देर से आऊँगी, आजकल डर भी बहुत लगने लगा है। अपने विचारों  में खोई  वो अंधेरी जमीन पर जैसे रास्ता खोजती हुई सी जा रही थी।

           एकाएक वीरेन्द्र की आँख खुली थी, बैड के साईड पर हाथ गया था,मिन्नी नहीं थी। मोबाइल उठा कर टाईम देखा तो  ,उसे याद आया मिन्नी तो आजकल घूमने जाती है।बाहर निकला तो ठंडी हवा के झोंके ने स्वागत किया था।उफ्फ़ ठंड शुरू हो ग ई है।अंधेरा भी है। वो रसोई में गया था चाय बनाने के लिए। चाय छान कर पीना शुरू किया कि एक घूट भरते ही सिंक में थूकना पड़ा था उसे। डुग्गु पानी पीने के लिए रसोई की तरफ ही आ रहा था।

पापा और रसोई में?

गुडमार्निंग पापा।

मार्निग बेटा।

क्या  कर रहे हैं पापा कुछ मदद करूं?

अरे नहीं यार तेरी मंमी ने इस घर में सबकी आदतें खराब कर रखी है।एक कप चाय नहीं बना पाया हूँ, इतने सालों बाद जो रसोई में कुछ बनाने  घुसा हूँ।

मैं बना देता हूँ पापा, मुझे आती है चाय बनानी।
अरे नहीं, अब तो तेरी मंमा भी आती ही होगी। 
गर्म पानी पियेंगे पापा मैं अपने लिए गर्म कर रहा हूँ।

हाँ दे दे एक गिलास। 

तभी बाहर से  गेट खुलने की आवाज आई थी,मिन्नी बाहर से ताला लगा कर ग ई हुई थी।
अंदर आते ही उसने देखा रसोई की लाईट जल रही है।वीरेन और रसोई में? वो उधर ही मुड़ ग ई थी।पानी का गिलास लेकर वो बाहर निकल र हा  था।
आप और रसोई में?

पानी लेने आया था । वो वापिस चला गया था।

पर पानी तो रूम में रखा है।

मंमा गुड मार्निंग, पापा चाय बनाने आये थे उनसे बनी नहीं।मैं बनाता पर वो बोले, तेरी मंमा आने ही वाली है।

 मिन्नी की नज़र बर्तनों वाले सिंक पर ग ई तो वो सारा माज़रा समझ ग ई थी। उसने दो कप चाय बनाई और अंदर ले ग ई थी।वीरू ने सिगरेट सुलगा रखी थी।
सुबह सुबह सिगरेट फूंक रहे हो, कम से कम पानी तो पी लो पहले।

पिया है अभी,डुगू ने दिया था।और उसनें सिगरेट बुझा दी थी।

मिन्नी ने उसे  चाय पकड़ा दी थी।

बिना मिन्नी की तरफ देखे चाय पकड़ ली थी उसने।
मिन्नी ने उसके हाथ पर हाथ रखा था।वीरेन किसी बात से परेशान हो क्या?

मिन्नी  मैं तेरे बिना नहीं रह सकता, मर जाऊँगा मैं तेरे बिना।
तो क्या ये आकाशवाणी हुई है कि मैं ये लोक छोड़ कर परलोक सिधार रही हूँ।
बकवास बंद कर , ऐसा बोलना भी मत, तूं मेरी आदत हे मिन्नी, जरूरत न हीं और  यू नो इट बेटर, वीरू जरूरत खत्म कर सकता है पर आदत नहीं खत्म कर सकता।

जी सरपंच साहब मुझ से बेहतर ये बात कौन जान सकता है?

ताना मत मार मैं जहाँ बोल रहा हूँ वहीं खड़ी होकर सुन, और हाँ इतनी सुबह अकेली घूमने  मत जाया कर।बाहर बहुत अधेंंरा होता है।

वीरेन आप क्यों परेशान हैं?

मैं कोई परेशान नहीं हूँ, मुझे तुम से दोबारा इश्क हो गया हे मिन्नी।

पहले वाला खत्म हो गया था न वीरेन।

 मैने बोला न तूं आदत है मेरी और आदत न हीं छोड़ सकता मैं।वीरेंद्र ने उठ कर बाँहों में भर लिया था मिन्नी को,और दरवाजे बंद कर दिया था।
 
    वीरेन घर में बड़े बच्चे हैं , कुछ तो सोचा करो

तेरा राज कुमार तो एक.घंटे से पहले एक्सरसाइज से फारिग नहीं. होगा, रही मेरी शहजादी तो वो घर आने के बाद आठ बजे से पहले उठती नहीं तो  क्यों न इस समय का सद्पयोग किया जाये।वीरेन ने उसे अपनेआगोश में ले लिया था।

 वीरेंद्र डुग्गु को छोड़ने स्टेडियम निकल गया थाऔर वहीं से फोन करके कुछ जरूरी सामान गाँव में हलवाई को पहुंचा या था। माँ उठ कर नहा कर चाय बिस्किट ले चुकी थी डिंकी को लेकर वो ऐटीएम तक ग ई थी। कमला भी आज देर  से आने वाली थी।क्योंकि उसे भी गाँव जाना था। माँ पहले ही कह चुकी थी उसको। मिन्नी ने सब कपड़े धो लिए थे, बाहर सूखा ही रही थी कि गाड़ी आकर रूकी थी।वीरेन्द्र अंदर आते ही झल्लाया था।

जरूरी है खुद को थकाना, कमला धो देती, फिर बीमार पड़ेगीऔर दोष मेरे को मढ़ा जायेगा, वीरू बहू का ख्याल न हीं रखता। पापा आप मंमी की केयर नहीं करते।

मैने.सुबह से यही काम किया है और कुछ नहीं। फिर थकान कैसी?

माँ कहाँ है?

डिकीं को लेकर बेंक साइड ग ई हैं।

 बेंक क्यों?

क्यों शब्द तो मैने आजतक आपसे नहीं पूछा चौधरी साहब, वो तो माँ हैं।

मौका नहीं छोड़ती हो बेगम सुनाने का।

आप नहा लीजिए, अंदर कपड़े तैयार रखे हैं।

चलो न समय की बचत करते हैं ,नहाना तुम्हें भी हैऔर मुझे भी।

वीरेन प्लीज़ आप नहायें जाकर।

मेरी हर बात को नकारने की आदत बना  ली है तुमने बहुत रोओगी जब  मैं नहीं रहूंगा।

वीरेन,  कपड़े वहीं फैंक कर गीली सीली सी  मिन्नी भागकर उसके सीने से लग ग ई थी।हर पल मुझे रूलाने में मजा आत है न आपको, बहुत खुशी मिलती है न।कुछ भी बोलते रहते हो चाहे उसके अर्थ से भी नावाकिफ हो।मिन्नी का गला रूंध गया था, और आँखे गीली हो ग ई थी।

वीरेंद्र ने उसे अपनी बाँहों में संभाल लिया था। 
बेगम, "आपके मुँह से इजहार ए मोहब्बत चाह रहा था क ई दिनों से। ये तुक्का काम कर गया।और इस पल क लिए तो मैं हज़ार बार मर सकता हूँ जब आप खुद मेरी बाँहों में आयें और मेरे दिल पर अपने दिल  से दस्तक दें"।
 तभी गेट पर दस्तक और खासीं की आवाज ने वीरेंद्र का ध्यान खीचा था।

शिवजीत भाई। वह.फुसफसाया था और अपनी बाँहों की गिरफ्त ढीली करदी थी।

मिन्नी तो जैसे नींद से जागी थी,आँखें पोछती हुई अंदर भाग ग ई थी।

 नमस्ते भाई,वीरू थोड़ा सा शरमा रहा था।

 नमस्ते भाई , चाची कहाँ है,मैं गाँव जा रहा था सोचा चाची को भी लेता जाँऊगा। वहाँ पर हलवाई बैठे  हैं,कोई बड़ा सयाना होना चाहिए।
मैं सुबह ही जाकर आया हूँ भाई ,सामान दें आया था, रोशन और उसके दो बंदे वही पर संभाले हुए हे।
रोशन से क्या लाठी बजवानी हें वहाँ पर?

तभी गेट खुला और डिंकी अंदर आई थी।
ताऊजी नमस्ते।

नमस्ते बेटी खुश रहो, डुग्गु  कहाँ है?

वो स्टेडियम गया है ताऊजी।

 चाची आप चल रहे हो क्या गाँव मैं जा रहा था,तो मैने सोचा आप को लेता चलूं।वीरू तो शायद देर करेगा।

रूक बताती हूँ, मिन्नी ओ मिन्नी

माँ अंदर चली ग ई थी,मैं निकल जाऊँ क्या बेटी,शिवजीत आया हुआ है।

देख लो माँ जैसा आप चाहो।

डिंकु तूं भी मेरे साथ चल।

पर दादी अभी मैं नहाई भी नहीं हूँ।

अरे तो वहाँ नहाना आराम से।

भूख भी लगी है दादी।

छोरी वहाँ तेरे लिए कुछ बढि़या बनवाऊँगी तेरी पंसद का,चल।
जाऊँ मंमी?

जाओ दादी कह रही हैं  तो जाओ।

मिन्नी उसे कपड़ों वाले बैग से दो जोड़ी कपड़े निकाल कर देती है,ये नहाकर पहन लेना,और ये  शाम के फंक्शन के लिए।

माँ मिन्नी को पाच हजार रूपये देती है, ले बेटा तेरी अच्छी सी ड्रेस ले लेना।

पर माँ मैं तो 

पर वर कुछ नहीं, ये तेरे बाऊजी के पैसे है, मैं तो कभी निकलवाती ही नहीं, हर महीने जमा होते रहते हैं।जरूरत ही नहीं पड़ती।घर परिवार में पहली शादी हैं तो मेरा भी तो कुछ हक बनता है ना। तुम्हारे बाऊजी होते तो पता नहीं क्या क्या करते अपने वीरू के बच्चों के लिए।माँ की आँखें भर आई थी।

डिंकु ये ले ये पाँच हजार तेरे और पाँच तेरी बहन के। पता नहीं रीति तो आ भी पायेगी या नहीं शादी में। 
डिंकी पैसे लेने म़े थोड़ा झिझकी तो मिन्नी ने इशारा कर दिया कि मना न करे।तभी डुग्गु जो गेट पर खड़ा सब देख रहा था,
और दादी मैं?
तूं तो मेरा चाँद हे रे डुग्गु ये ले,उन्होंने ऐटीएम  कार्ड  डुगू की तरफ बढ़ा दिया था। तेरा दिल करे वो चीज ले बेटा।
दादी पक्षपात कर रही हो ,अपने पोते को तो कार्ड और मुझे पाँच हजार।

तभी वीरू अंदर आया था, भाई को कोई चाय पानी भी दोगे क्या।

मिन्नी ने चाय के कप आगे बढ़ा दिये थे।

  मिन्नी ने डिंकी से कहकर बैग में से नया सूट और शाल मंगवाया था।

माँ ये आप शाम को पहन लेना।

पर बहू ये भी तो नया ही है तूने सुबह ही तो निकाल कर दिया था।

माँ मैंने ये शाम के फंक्शन के लिए तैयार करवाया है।डिकीं  इसे बैग में रखो।

मंमी डिंकी दादी के साथ ही जा रही है, मैं भी चला जाऊँ , वहीं नहा लूंगा। डिंकी प्लीज मेरे भी कपड़े ले ले मंमा से बहन।

अपना काम खुद किया कर,डिकीं कोई पेशे से नौकरानी नहीं है।

बहन तो है।

डिकीं उस  अलमारी में दो ड्रेस  टंगी हैं भाई की दोनों ले ले। बाहर ताऊजी बैठे ह़ै और मैंने नाइटसूट पहना है।
मिन्नी की हिम्मत ही नहीं  है रही थी बाहर जाने की, उसे बहुत शर्म आ रही थी।
 तभी कमला भी पहुच ग ई थी।सब सामान  रखवा दिया था उसने गाड़ी मेंऔर खुद भी उन लोगों के साथ ही चली गई थी।

हाँ तो मैडम  क्या इरादा है अब?

आप प्लीज नहा ले जाकर,पहले ही काफी  देर हो चुकी है, बच्चे बिना नाश्ता किये ग ए हैं।भाई साहब क्या सोचते  होंगे मेरे बारे में,उफ़्फ़।

कोई कुछ नहीं सोचता किसी के बारे में,बीवी हो तुम मेरी, तुम्हें प्यार करने का तो लाईसेंस है मेरे पास।

तभी फोन की घंटी ने मिन्नी को चेताया था।

रीमा टेलर, स्क्रीन पर नाम उभर रहा था।

अब इन का फोन क्यों आया है?

किस के फोन से परेशान हो बेगम? लाओ मेरी बात करा दो।

जी मैडम कहिए

पर मैडम इस समय तो मेरा आना बिल्कुल संभव नहीं है। मुझे तो अभी गाँव पहुँचना है,हमारे यहाँ एक फंक्शन है।

 मैं देखती हूँ।

मिन्नी के चेहरे पर परेशानी की लकीरें खिच ग ई थी।

 क्या हुआ, कुछ बोलोगी भी?

कुछ नहीं हुआ, आप नहा ले, मैं आपका जूस बना कर एकबार अपनी टेलरेस से मिल कर आती हूँ।उसने कहा है कि गर मैंने ड्रेस ट्राय  नहीं किए तो वो फिर टाईम पर नहीं दे पायेगी।

तो परेशानी की क्या बात है चली जाओ।

अभी तैयार होने में नहाने में ही  आधा घंटा लग जायेगा, फिर उसके पास  जाती हूँ तो आधा घंटा और। मैं यूं करती हूँ आने जाने का आटो बुला लेती हूँ।

आटो की क्या जरूरत है मैडम,आप नहायें ,तैयार हो जायें,आपका कार ड्राइवर  हाजिर है।

आप ले जायेंगे मुझे?

क्यों नहीं पसंद मेरे साथ जाना।

मेरा वो मतलब नहीं है वीरेन, क्योंकि आप को तो समय ही नहीं रहता किसी काम के लिए,और मुझे भी अब तो हर काम अकेले ही करनेकी आदत पड़ ग ई है, इसलिए आपका कथन मुझे कुछ अटपटा सा लगा।
अब नहा कर तैयार हो जा वरना फिर सुनायेगी कि आप की वजह से देर हुई है।

दोनों नहा तैयार हो चुके थे.

मिन्नी को देखकर वीरू ने कहा था, सूट क्यों पहना हैं, साड़ी क्यों नहीं पहनी, जबकि तुम्हें पता है मुझे तुम्हारा साड़ी. पहनना अच्छा लगता है।

अब एक अरसे बाद अपनी पसंद बताओगे तो कहाँ याद रहेगा चौधरी साहब,और् वैसे भी मैं सूट ही ज्यादा पहनती हूँ।

तानें मारना बंद कर,और साड़ी पहन ले।वीरू शायद अपने गुस्से के भाव छिपा नहीं पाया था।

 टेलरेस के यहाँ कपड़े बदलने पड़ेंगे ,इसलिए साड़ी नहीं पहनी,  शाम के फंक्शन में पहन लूंगी।

 मैंने ये नहीं पूछा कि तू फंक्शन में पहनेगी या नहीं, मैं तो तुझे अब साड़ी में देखना चाहता हूँ।

 आप कभी मेरी समस्या नहीं समझेंगे, अभी टेलरेस के यहाँ जाना है, मुझे दवाई भी लेनी है,बस बदलते रहो कपड़े। और सुने मैं आटो से टेलरेस के यहाँ चली जाती हूँ ,आपको शायद इसलिए गुस्सा आ रहा है।

मिन्नी ने अपने आटो वाले का नम्बर डायल ही किया था कि वीरू ने उसके हाथ से लेकर कर मोबाइल बंद कर दिया। 

मैने कहा न मैं चल रहा हूँ।

मुझे जाना ही नहीं टेलरेस के यहाँ।चलो गाँँव ही चलो।

गाड़ी में बैठ।

आप निकले मैं  ताला लगाकर आती हूँ।  

कहाँ है तेरी टेलरेस?

बोला न नहीं जाना मुझे, आप गाँव चलें।

तुझे पता है न ज्यादा चिकचिक मुझे पसंद नहीं आती। झगड़ा बाद में कर लेना। तेरे साथ ही हूँ पूरा दिन। जगहं बता?

गाड़ी मिन्नी के बताये रास्ते पर चल पड़ी थी।  कपड़े बिल्कुल सही फिटिंग के बने थे।  कल शाम को उठा लेना मैम तैयार मिलेंगे।

थैंक्स मैम , कहकर  मिन्नी बाहर आ ग ई थी।
वीरू गाड़ी से बाहर सिगरेट पी रहा था। 

मिले नहीं कपड़े?

फाइनल टच देकर कल शाम को दे देंगी।
मिन्नी गाड़ी में बैठ ग ई थी,एक बोतल में जूस और एक कसाटा आईस्क्रीम जो किसी ज़माने में उसकी बहुत पसंदीदा हुआ करती थी । रखी थी।उसने उन्हें उठा कर पीछे रख दिया था।

क्या हुआ मिन्नी आईस्क्रीम पीछे क्यों रख दी?वो लम्हें याद करो जब तुम मेरे जूस में से एक सिप लेती थीऔर मैं तुम्हारी आइसक्रीम से एक बाईट।

वो ज़माना बीत गया वीरेन, मिन्नी ने एक ठंडी साँस ली थी।
कुछ भी नहीं बीता मिन्नी, वीरू ने गाड़ी साइड पर लगा कर आइसक्रीम का पैकेट खोल दिया था,और जूस की बोतल  उसे पकड़ा दी थी।मेरी खातिर एक सिप लो न जूस,और अब मैं तुम्हारी खातिर ये कसाटा की बाईट ले रहा हूँ।

मिन्नी को  उसके अंदाज पर हँसी आ ग ई थी।

यूं ही हँसती रहा कर बेगम, तेरी हँसी बहुत प्यारी है।चल खत्म कर इ स आइसक्रीम को मुझे मेरा जूस पीने दे।

ये लम्हें मिन्नी को बहुत अपने से लगे थे बड़ें करीबी से। गाँव आने में चंद किलोमीटर ही बाकी थे गले का दुपट्टा सिर पर घूंघट की तरहं आ गया था।

वाह बेगम आपकी इन्हीं अदाओं पर तो हम मरते हैं,सबका ख्याल रखेंगी बस हमे छोड़ देंगी।

ये आजकल  आप क्या हिंदी फिल्मों के घिसे पिटे डायलॉग मारने लगे हैं।

अच्छा जी हमारा इजहार ए मोहब्बत आपको घिसे पिटे डायलॉग लगने लगा है।

गाँव आ चुका था,वीरू अब बिल्कुल खामोश हो गया था।.घर के बाहर गाड़ी रूकी थी, मिन्नी पीछे मुड़कर बैग उठाने. को हुई थी कि वीरू बोला, चल अंदर, ये पहुँच जायेंगें। उसने नीचे पैर ही रखा था कि एक उन्नीस बी स। साल की लड़की शायद बचाव की गुहार लगाते हुए उसके पैरों में गिर ग ई थी।उसके पीछे  पीछे उसे गाली देती हुई एक अधेड महिला भी थी,शायद वो उसे पीटती हुई जा रही थी, और वो मिन्नी को देखकर बचाव की उम्मीद लगा बैठी हो।
ये क्या बदतमीजी है, छोडों इसे।
  छोड़ क्यूंकर दूं सरपंचनी, रूपये एक लाख दे रखे हैं इसके। वो उस लड़की के बाल पकड़ कर  घसीटने लगी थी।

आप इसे छोड़ती हैं या मैं पुलिस को बुलाऊँ, मिन्नी ने हाथ का मोबाइल उपर किया था।

तभी गाड़ी बंद करके वीरू उधर आ गया था।

अंदर जाओ मिन्नी, जैसे वो एक नज़र मे सारी स्थिति भांप गया था।

"मैं इस मासुम को इस बेरहम के हवाले नहींं कर सकती सरपंच साहब,ये किसी की ज़िंदगी और इज्ज़त का सवाल है"। वो उस लड़की को साथ लिए घर के अंदर चली गई थी।

क्या बात चाची क्यों पीट रही है, किस की बहू है ये?

"अरे बेटा सरपंच मेरा तो एक ही बेटा है,रमेश,  उसी की बहू है ये,एक लाख म़े लेकर आई थी रांड को और आज ये घर से भाग  रही थी"।अब सरपंचनी पुलिस बुलायेगी।म़ै तो जमा लुट गई।एक लाख रूपए भी ग ए ् और बहू भी  हाथ से ग ई।

कुछ कहीं नहीं गया चाची और गाली देके नहीं बोलते, बहू है अपनी तो बहू  कहकर बात कर , ये रांड रूंड क्या है। बैठ जा तूं बैठक में जाकर , तेरा ही घर है ये भी।कहकर वीरू अंदरचला गया था।
मिन्नी, उसने जाकर बैडरुम का दरवाजा  खटखटाया था।

जी कहिए?

ये तेरी अखबार का दफ्तर नहीं है, ये गाँव है गाँव, यहाँ इन्हीं की मर्जी चलती है।और हर घर में छोटी मोटी बात हो जाती है, तेरे घर में भी होती है।

ठीक कहा सरपंच साहब आपने हर घर में बाते होती रहती हैं।मेरे घर में भी होती हैं,पर जब घर की बात सड़क पर आ जाती है तो वो एक सामान्य बात नहीं रहती है।इस लड़की ने मुझे बताया है कि ये बंगाल के एक गाँव से है।माँ मर चुकी है,बाप ने इन लोगों के हाथ बेच दिया है। खाने को देती नहीं है ये औरत,भूखा रखती है, सारा काम करवाती है। जो पति नाम का प्राणी है वो कुछ नहीं बोलता, बाहर रहता हे, तीसरे चौथे दिन आता है, नोच खसोट कर मार पीट कर अपनी इच्छा पुर्ति कर के फिर निकल जाता है।ये औरत तो रोजाना मारती है।
अब आप ही बतायें कैसे सौंप दिया जाए एक बेकसूर को इन दरिंदों के हाथ?
  क्या करेगी तूं इस का यहाँ पर बहू है उनकी वो, घर म़े घुसा भी नहीं था कि पहले ही पंचायत बुलवा ली मैडम  ने।बाहर लोग इंतजार कर  रहें है अपने सरपंच के फैंसले का,  क्या करू अब?

जाओ सरपंच  ,आज  प्लीज़  इंसाफ के साथ इंसाफ कर देना,वरना मेरी मोहब्बत खुद की नजरों मे ही रूसवा हो जायेगी।

प्लीज वीरेन उसने वीरू के हाथ पकड़ लिए थे।
हाथ छुड़वा कर बाहर निकल गया था वीरेंद्र।

मिन्नी ने उस लड़की को खाना वगैरह खिलवाया था.
बाहर माँ डिंकी , डुग्गु, शिवजीत सभी पहुँच ग ए थे।
कहाँ थे भाई आप सब?

अरे वो दादा समरसिंह जी का परिवार कल से गाँव आया हुआ है,उन्हें पता चला कि बच्चे आये हुए हैं तो दादा जी ने फोन किया कि अभी लेकर आ बच्चों को।

वो शाम को तो आ रहे है ना?।

हाँ हाँ बिल्कुल।

वीरू ये  भीड़ कैसी है बेटा?

तेरी लाडली बहू ने पंचायत बुला रखी है माँ।

मतलब?

वीरू ने पूरा किस्सा सुनाया तो माँ ने कहा ठीक ही कहती है मिन्नी।और अंदर चली गई, बच्चे पहले ही अंदर जा चुके थे।

क्या करूं भाई समझ ही नहीं आ रहा?

शिवजीत हँसने लगा था, जा  संभाल मैं अंदर  हलवाई को देख लेता हूँ।

वीरेंद्र ने बाहर आकर कहा था।" चाची रमेश को भेज दे बहू को ले जायेगा आकर, और ये बाते कि पैसों में लाये हैं , बोलनी बंद करो, वरना पुलिस ले जायेगी और जमानत भी नहीं होगी। 

रमेश क्या करेगा, मैं माँ हूँ उसकी ।
पुलिस आई तो पहले तेरे को ही पकड़ेगी, रमेश का नम्बर बाद में आयेगा। मैं तो समझौता करवाना चाहता हूँ,बाकी तेरी मर्जी चाची।

मैं लेकर आती हूँ रमेश को।

दस मिनिट में दोनों माँ बेटा पहुँच गए थे।

हाँ  रमेश क्यी समस्या है तेरी, बहू को क्यों तंग करता है?

 भाई साहब मैं तो इतना परेशान हूँ कि मै तो खुद ही घर छोड़ कर जाने की सोच रहा हूँ। माँ को तो आज ही नाती पोते खिलाने का जनून है। वो राम की बंदी मुँह से कुछ बोलेगी ही नहीं।कुछ बताये तो पता भी चले। आज सुबह सुबह ही घर से गायब हो गई, वो तो किसी ने घर आकर बता या कि अड्डे पर देखा है।एक रूपया जेब में नहीं और घर छोड़कर निकल पड़ी। बेज़्ज़ती करवा रखी है सारे गाँव में।

कोई बात नहीं तूं बहू को प्यार से समझा ले भीतर है तेरी भाभी के पास,  ,  भाभी को भी कह देना कि आगे से ऐसी नोबत नहीं आयेगी। मैं चाची को समझाता हूँ।

 दोनों की बातें सुनकर समझा बुझा कर चाय पिलाकर विदा किया था मिन्नी ने।आज वीरू सरपंच की बढ़ाई के साथ साथ लोग मिन्नी की दयालुता  की भी चर्चा कर रहे थे।

वीरू अंदर आया तो देखा डिंकी आन लाईन कोई क्लास अटैंड कर रही थी। डुग्गु वहीं बराबर वाले बैड पर सोया पड़ा था।माँ के पास दो चार औरतें बैठी थी।
अपने कमरे में गया तो देखा, मिन्नी फोनपर व्यस्त थी शायद रूपा दीदी से ही बात कर रही थी। वीरू ने पीछे से उसे अपनी बाहों की गिरफ्त में ले लिया था। "मेरे साथ भी  इंसाफ कर दे  सरपंचनी वरना मेरी मोहब्बत रूसवा हो जायेगी।"वीरू उसके कान  में फुसफसाया था।

ठीक हे दीदी इंतजार कर रही हूँँ आपका।

 वीरेन  आपने पी तो नहीं ली है,सुबह सुबह।

नहीं अभी तो नहीं पी,पर पूछने आया था तेरे से कि ले लूं थोड़ी सी,वो मुस्करा रहा था।

वीरेन प्लीज़ पीना मत आज तो,प्लीज।

क्यों मैं किसी के साथ झगड़ा करता हूँ क्या पीने के बाद?
किसी को कुछ नहीं कहते,पर मुझे तो आप टारगेट ही कर लेते हो पीने के बाद, मुझे बहुत डर लगता है वीरेन, अपना घर हो तो फिर भी चल जाता है  पर यहाँ तो?
अपना घर मतलब,ये किसका घर है  बेगम?ये तो अपना पुश्तैनी घर है।

मेरा मतलब है,यहाँ सब है,लोग क्या कहेंगे?

तेरा दिमाग खराब है,कुछ भी बोलती रहती है।

तभी दीदी की आवाज ने उन दोनों को चौंका दिया था।
मिन्नी, वीरू, माँ

 मिन्नी फटाफट नीचे आई थी, बहुत प्यार से मिली थी दोनों।

माँ भी बाहर आ गई थी। वीरू ने आकर दीदी के पैर छुए थे।

डिंकी डुग्गु कहाँ है मामी? दीदी की बेटी ने पूछा था।
वो उधर रूम  में है तुम वहीं चलो मैं चाय नाश्ता भेजती हूँ।
मामी कोई चाय नहीं  कोई नाश्ता नहीं, खाना खाऊँगी बहुत भूख लगी है।  

अभी खाना लगवाती हूँ।

मिन्नी ने बच्चों का खाना कमरे में ही भेज दिया था।
माँ और दीदी का खाना इधर ही लगवा दिया था
तूं भी खा ले मिन्नी।

आप खायें न दीदी, मैं भी खा लूंगी।

वीरू ने नहीं खाया न  अभी तो मिन्नी तो भ ई उसके साथ ही खायेगी।

अरे माँ ऐसा बेटा नहीं है आपका जो मुझे अपने साथ खिलाये।

पर बहू तो मेरी ऐसी है न जो बेटे के साथ का इंतजार करती है।

मेरी चुगली चल रही है न वीरू बाहर से आता है।

खाना लगवा दूं आपका?

हाँ खाना भी खा लेंगे भ ई।

बच्चों ने खा लिया?

हाँ खा रहे हैं।

तभी  पुलिस की गाड़ी का सायरन बजा था।
वीरेन, एकदम घबराई हुई मिन्नी के मुँह से निकला था।
क्या हुआ तेरे को,अब गाँव में पुलिस का आना जाना बंद तो नहीं कर सकते ना।

तभी रोशन अंदर आया था।

वीरू भाई साहब थानेदार साहब आये हैं।

बैठा  ले, आ रहा हूँ।

वीरू बाहर जा कर चंद मिनिट में ही अंदर आता है,उसके साथ एक पच्चीस छब्बीस वर्षीय लड़की भी है.
 मिन्नी मिन्नी

जी वो किचेन से बाहर आती है।

ये मेरी पत्नी मृणाली वीरेंद्र सिँह,और मिन्नी ये  मैडम,आपकी बिरादरी  से ताल्लुक़ रखती हैं,मेरा मतलब जर्नलिस्ट है रूपाली शर्मा।
नमस्ते मैम, रूपाली ने हाथ जोड़े थे।
आयें रूपाली आयें, प्लीज़ मिन्नी उसे अंदर ले जाती है।
तभी रोशन आता है ,भाभी चार बंदों का खाना लगवा दो।
रूपाली से दो मिनिट माँगकर मिन्नी, बाहर फटाफट खाना भिजवाती हे, अंदर रूपाली के लिए भी खाना भिजवाती है।

मैम खाने का तकल्लुफ़ न करें।

कोई तकल्लुफ़ नहीं है डियर, खाने का वक्त हे।
 मैम मैंने बहुत सुना था कि इस शहर की एक रिपोर्टर को उनके.साहंसिक कारनामे के लिए सम्मानित किया गया था।पर वो अब भी इस शहर में हैं ये नहीं जानती ती।आपकी कहानियां भी पढ़ती रहती हूँ मैम। वो तो इस शहर में  इस केस की स्टोरी कवरेज के लिए आ रही थी तो इंस्पेक्टर साहब ने बताया कि इस गाँव के सरपंच उनके क्लास मेट रहें हैं,और उनकी बीवी रिपोर्टर रही है। मुझे तो मैम इस केस स्टोरी से ज्यादा आपसे मिलने की तमन्ना ज्यादा हो रही थी।

अरे अरे रूपाली, जब भी दिल करे घर आ जाया करो डियर।

पक्का मैम।

मैम आप इस सुनीता सुसाईड केस के बारें में कुछ कहना चाहेंगी।

रूपाली मैं तो कुछ नहीं जानती डियर इस विषय में, सरपंच साहब व्यस्त ज्यादा रहते हैं,घर पर वो इन बातों की कम ही चर्चा करते हैं। कुछ उनका नेचर भी रिर्जव सा ही है। माँ  गाँव आती है तो उन्हीं से ही सारे समाचार मिलते हैं।अभी दीदी की बेटी की शादी है,बस उसी में थोड़ी व्यस्तता चल रही है।

मैम सुनीता और उस के पति में थोड़ा कहासुनी हुई,उनके पति ने थप्पड़ लगा दिया।और सुनीता फासी के फंदे पर झूल गई।दो बच्चे हैं,लड़की सतरह साल की और लड़का पंद्रह साल का।
उफ़्फ़ बहुत ही गलत हुआ ये तो। आत्महत्या किसी भी समस्या का समाधान नहीं है, और  फिर दो बच्चे हैं उनका  भविष्य है।किस घर में झगड़ा नहीं होता ।मेरे ख्याल से किसी भी समस्या से पलायन की बजाय आत्म आंकलन कर के उसे सुलझाया जा सकता है।

सही कहा मैम आपने, इस वक्त तो उनके पति भी बहुत गंभीर अवस्था में मेडिकल में हैं।उन्होंने भी खुदकुशी का प्रयास किया था,जब उन्हें अपनी पत्नी की मौत के बारे में पता चला। पहले तो पत्नी के मायके वालों ने उन्हें गिरफ्तार ही करवा दिया था कि हमारी बेटी का  मर्डर किया है। परन्तु पोस्टमार्टम और बाकी रिपोर्ट के हिसाब से उन्होंने केस वापिस ले लिया है।

तभी वीरू अंदर आया था,
सरपंच साहब आप क्या  कहेंगे इस केस के बारे में जो आपके गाँव में घटा है।

मैडम बहुत बुरा हुआ है,बच्चों को देखकर बहुत बुरा  लग रहा है, रमेश की भी हालत गंभीर है। 
आप के हिसाब से इस घटना के लिए कौन ज्यादा जिम्मेदार है मरहूम सुनीता या उनके पति?

मैडम हालात बन  जाते है वरना कौन अपना बसा बसाया घरोंदा तहस नहस करना चाहता हैं।उसकी नजरें मिन्नी की तरफ उठ ग ई थी।

सरपंच साहब एक बहुत ही निजी प्रश्न जो अखबार के लिए नहीं है, क्या मृणाली मैम का और आपका  भी कभी झगड़ा होता है?

कभी ,वीरेन मुस्कराया था,आपकी मैम तो हमेशां मुझे डाटती रहती हैं।

क्यों मैडम मैंने कुछ गलत कहा?

रहने दीजिए सरपंच साहब, पोल न खुलवायें अख़बार  वालो के सामने।

सर झगड़ा होने के बाद पहले कौन सॉरी बोलता है?
 मैं मैडम मैं , ये चाहे  कसम खिलवा लीजिए। बहुत प्यार जो करता हूँ अपनी बीवी से।वीरू मुस्कराया था।
रूपाली ये सब बातें अखबार में मत टांग देना प्लीज़ डियर।
नहीं मैम चिंता न करे। 
 मैडम इंस्पेक्टर साहब बुला रहे ह़ैं उनको निकलना है।
जी सरपंच साहब।

 मिन्नी गेट तक छोड़ने आई थी तो उसनें  घूंघट  से अपना चेहरा ढांप रखा था।
भाभीजान नमस्कार।इंस्पेक्टर ने हाथ जोड़े थे।

नमस्कार भाई साहब, आपने लंच किया या नहीं?

बहुत दिनों बाद अपने दोस्त के साथ लंच किया है भाभी,मेरी भी डयूटी ऐसी हैंऔर फिर वीरू मुझ से भी ज्यादा व्यस्त।आप लोग कभी घर आयें ना। विनीता  भी बहुत याद करती है आपको।
जरूर भाई साहब, ये शादी के बाद बनाती हूँ प्रोग्राम इन के साथ।

हाँ भाभी डुग्गु के लिए बहुत बधाई।

शुक्रिया भाई साहब पर अभी तो मंजिल दूर है।

जीतेगा भाभी जरूर जीतेगा।

मृणाली मैम एक प्रश्न और आप इतनी शिक्षित हैं जागरूक हैं, फिर भी आप घूंघट करती हैं, सरपंच साहब का दवाब 
?
नहीं रूपाली किसी का भी कोई दवाब नहीं, ये हमारे परिवार की रवायत है,और रवायतों  को निभाना मुझे बहुत पंसद है्।

रूपाली ने दोनों का एक फोटो क्लिक कर लिया था।
मैम बहुत सुंदर फोटो है आपके नम्बर पर भेजती हूँ।
 वो तो ठीक है पर कहीं और मत भेजना प्लीज़।
माफी चाहूँगी मैम पर एक स्टोरी तो डालूँगी जरूर अपनी प्रिय लेखिका और जर्नलिस्ट की।

पुलिस की गाड़ी निकल ग ई थी।।चार बज  गए थे, शाम के फंक्शन की तैयारी शुरू हो ग ई थी। दीदी बड़े भाई के घर ग ई हुई थी। माँ बच्चों को तैयार होने के लिए बोल रही थी।  फंक्शन शुरू हो गया था धीमे धीमे म्यूजिक के साथ।छोटे बच्चे थिरकने लगे थे। बड़े बच्चे अपनी अपनी पंसद के गाने अपने मोबाइलों में ढूढ़ रहे  थे। डिंकी और डूगू भी तैयार हो चुके थे।  मिन्नी फिर नहाने जाने लगी तो माँ ने कहा था,"मिन्नी ये कोई वक्त है नहाने किसी वक्त भी तुम नहाने लग जाती हो।"

माँ  सिर में हल्का हल्का दर्द है थोड़ा नहाऊँगी तो अच्छा लगेगा।
ठंड लग जायेगी बेटा। चल नहाले ,पर नहाते ही कुछ गर्म पी लेना।
  मिन्नी नहाकर थोड़ा लेट ग ई थी उसने सिरदर्द की दवा भी ले ली थी, मन नींबू पानी पीने को था,पर मौसम इजाजत नहीं दे रहा था। वो लेट ग ई थी मोबाइल आफ कर के , आज लेटते ही नींद आ ग ई थी।  सात बजने वाले थे।तभी वीरू आया था।

माँ मिन्नी कहाँ है?फोन आफ है उसका।
 नहाकर ऊपर  गई थी, कहीं सो तो नहीं  ग ई, तबियत खराब बता रही थी।
ऊपर चला गया था वो तेज कदमों से।
जाकर देखा तो मिन्नी सोई पड़ी थी, मिन्नी मिन्नी

एकदम से उठ बैठी थी वो," जी कहिए?"

मोबाइल आफ करने से पहले बता दिया करो यार  टैन्शन हो जाती है।
तैयार क्यों नहीं हुई, सब तैयार हैं लगभग।

थकावट से नींद आ गई थी वीरेन।

माँ कह रही थी, तबियत ठीक नहीं है तेरी।

नहीं ठीक हूँ,आप चले मैं तैयार हो जाती हूँ।

मेरे यहाँ बैठने  से तैयार होने मे दिक्कत आयेगी क्या?

 आपको नीचे कोई काम नहीं है क्या?

तभी कमला चाय के दो कप ले आई थी,दीदी, चाय ले लो माँ ने भेजी है।

वीरू ने दरवाजा खोल कर चाय ले ली थी।

मिन्नी  ले चाय

आप नहीं लेंगे क्या?

नहीं मैं नहीं लूंगा।

दूसरी चाय पी ली है क्या?

तेरा दिमाग खराब है, सारा दिन एक ही बात याद रहती है तेरे को। वो नीचे आ गया था।

मिन्नी  तैयार होकर नीचे आई तो जैसे फंक्शन की शुरुआत ही हो चुकी थी। काले रंग की गोल्डन बार्डर वाली साड़ी, सुनहरी बिंदी हाथ भर भर चूड़ियाँँ अधखुला घूंघट, काजल भरी आँखें, कोने में  खड़ा सरपंच फोन पर बात कर रहा था,तुरंत उसके मोबाईल के फ्लैश चमके थे,आज  शायद एक अंतराल के बाद मिन्नी इतने अच्छे से तैयार हुई थी।
सब की  नजरें उधर ही उठ ग ई थी

डीजे वाले ने भी अन्जाने में गाना लगा दिया था।

बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है।

बच्चों ने तालियां बजाई थी, मिन्नी तो जैसे खुद में सिमटी जा रही थी, कोने से मोबाइल के फ्लैश चालू थे।।

क्रमशः

 लेखिका, ललिता विम्मी
कहानी,औरत आदमी और छत
भिवानी, हरियाणा
 

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